Wednesday, September 30, 2009

चंद अशआर

जीने वाले तो सदियों को जी लेते है लम्हा-ए-हयात में,
लाख मुख्तसर वक्फा सही 'शकील' उम्र-ए-हयात का|


ख़ुद-ब-ख़ुद खुल जाएगा दरे कफस- ए-सय्याद,
दिल में जब जज़्बा-ए-परवाज़ होगा पैदा 'शकील'|

ज़िंदगी में गर रवानी है,
तो खुशक सेहरा में भी पानी है|

दुनिया को वजूद में लाना था,
आदम तो सिर्फ़ एक बहाना था|

अदम में थी मेरी रूह जसदे खाकी से पहले,
मुझे कौन जानता था मेरी ज़िंदगी से पहले|

मेरी ज़िंदगी में है वहम ऐ खुदा! तेरा,
जो मैं न होता 'शकील' तो तू क्या खुदा होता|

मैं गुनाहों, सबाब का वो मीज़ान हूँ 'शकील',
है खुदा पर भी यकीं और शैतान पर भी भरोसा मेरा|