जीने वाले तो सदियों को जी लेते है लम्हा-ए-हयात में,
लाख मुख्तसर वक्फा सही 'शकील' उम्र-ए-हयात का|
ख़ुद-ब-ख़ुद खुल जाएगा दरे कफस- ए-सय्याद,
दिल में जब जज़्बा-ए-परवाज़ होगा पैदा 'शकील'|
ज़िंदगी में गर रवानी है,
तो खुशक सेहरा में भी पानी है|
दुनिया को वजूद में लाना था,
आदम तो सिर्फ़ एक बहाना था|
अदम में थी मेरी रूह जसदे खाकी से पहले,
मुझे कौन जानता था मेरी ज़िंदगी से पहले|
मेरी ज़िंदगी में है वहम ऐ खुदा! तेरा,
जो मैं न होता 'शकील' तो तू क्या खुदा होता|
मैं गुनाहों, सबाब का वो मीज़ान हूँ 'शकील',
है खुदा पर भी यकीं और शैतान पर भी भरोसा मेरा|
Wednesday, September 30, 2009
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ReplyDeleteअदम में थी मेरी रूह जसदे खाकी से पहले,
ReplyDeleteमुझे कौन जानता था मेरी ज़िंदगी से पहले|
मेरी ज़िंदगी में है वहम ऐ खुदा! तेरा,
जो मैं न होता 'शकील' तो तू क्या खुदा होता|
bahut khoob likha hai, blog duniya men aapka swagat hai
हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
ReplyDeleteकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
बूँद बोली सागर से --
ReplyDeleteमेरे होने में है संदेह, अये सागर! तेरा.
जो मैं न होती बूँद, तो क्या सागर होता? ................. [चिंतन का पहला पड़ाव]
खाने को पेट में ले जाना था.
उसको पकाना तो एक बहाना था. ............................ [हल्का शेर]
गहरायी नहीं थी बिलकुल गड्ढा खोदने से पहले.
मज़दूर हूँ कौन जानता था कुदाल लेने से पहले. ........ [ज़मीनी शेर]
मैं गुनाहों, सबाब का वो मीज़ान हूँ 'शकील',
ReplyDeleteहै खुदा पर भी यकीं और शैतान पर भी भरोसा मेरा|
????
शक़ील साहब,
ReplyDeleteआपकी सोच में ऊँचाई और गहराई साथ-साथ हैं।
बात में दम है,
शिल्प में थोड़ा सा कुछ - कहीं कम है।
आपके अश'आर बह्र के पैमाने पर थोड़ा सा कसते नहीं, मगर तब भी मज़ा ख़ूब आ रहा है। अगर पूरे छन्द-मात्रा भी सही हो जाएँ तो क्या ही कहना!
सचमुच बात में दम है। ...चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है। आपके ब्लाग पर आकर अच्छा लगा। हिंदी ब्लागिंग को आप और ऊंचाई तक पहुंचाएं, यही कामना है।
ReplyDeleteइंटरनेट से घर बैठे आमदनी की इच्छा हो तो यहां पधारें-
http://gharkibaaten.blogspot.com
इस चिट्ठे के साथ हिंदी चिट्ठा जगत में आपका स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
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