Thursday, October 1, 2009

चंद अशआर

बरपा था मेरी लाश पर हंगामा-ए-शोर 'शकील',
एक मैं ही था जो रो न सका अपनी मौत पर|

बताये कौन किस को निशाँ-ए-मन्ज़ीले हयात,
अभी तो हुज्ज्तो वहम है राह गुज़र के लिए|

अब तू शर्मिदा जफ़ाओं पे न हो'शकील',
जिन पर गुज़री थी वही भूल गये|

ज़िंदगी हकीकत होती तो कोई बात थी,
ज़िंदगी गर भ्रम है तो बहकेगें 'शकील'|

यद् रखो तो दिल के हम पास है,
भूल जायो तो फासला बुहत है'शकील'|

प्यासे ही गुज़र जायगे राहे तलब मे'शकील',
साक़ी तेरा सितम मुझे याद रहेगा|

रूठ न जाए तुझ से ये हयात 'शकील',
जैसे भी यह बहले इसे तू बहलाले|

बस मेरे ही दम तक है ये हंगामा-ए-उल्फत,
फ़िर गर्दिशे आलम इसे दोहरा न सकेगा |

हाथ तो मैं भी फैला लूँगा मांगने के लिए 'शकील',
पहले अपना दामन तो वसीह कर लेने दे मुझे|