बरपा था मेरी लाश पर हंगामा-ए-शोर 'शकील',
एक मैं ही था जो रो न सका अपनी मौत पर|
बताये कौन किस को निशाँ-ए-मन्ज़ीले हयात,
अभी तो हुज्ज्तो वहम है राह गुज़र के लिए|
अब तू शर्मिदा जफ़ाओं पे न हो'शकील',
जिन पर गुज़री थी वही भूल गये|
ज़िंदगी हकीकत होती तो कोई बात थी,
ज़िंदगी गर भ्रम है तो बहकेगें 'शकील'|
यद् रखो तो दिल के हम पास है,
भूल जायो तो फासला बुहत है'शकील'|
प्यासे ही गुज़र जायगे राहे तलब मे'शकील',
साक़ी तेरा सितम मुझे याद रहेगा|
रूठ न जाए तुझ से ये हयात 'शकील',
जैसे भी यह बहले इसे तू बहलाले|
बस मेरे ही दम तक है ये हंगामा-ए-उल्फत,
फ़िर गर्दिशे आलम इसे दोहरा न सकेगा |
हाथ तो मैं भी फैला लूँगा मांगने के लिए 'शकील',
पहले अपना दामन तो वसीह कर लेने दे मुझे|
Thursday, October 1, 2009
Wednesday, September 30, 2009
चंद अशआर
जीने वाले तो सदियों को जी लेते है लम्हा-ए-हयात में,
लाख मुख्तसर वक्फा सही 'शकील' उम्र-ए-हयात का|
ख़ुद-ब-ख़ुद खुल जाएगा दरे कफस- ए-सय्याद,
दिल में जब जज़्बा-ए-परवाज़ होगा पैदा 'शकील'|
ज़िंदगी में गर रवानी है,
तो खुशक सेहरा में भी पानी है|
दुनिया को वजूद में लाना था,
आदम तो सिर्फ़ एक बहाना था|
अदम में थी मेरी रूह जसदे खाकी से पहले,
मुझे कौन जानता था मेरी ज़िंदगी से पहले|
मेरी ज़िंदगी में है वहम ऐ खुदा! तेरा,
जो मैं न होता 'शकील' तो तू क्या खुदा होता|
मैं गुनाहों, सबाब का वो मीज़ान हूँ 'शकील',
है खुदा पर भी यकीं और शैतान पर भी भरोसा मेरा|
लाख मुख्तसर वक्फा सही 'शकील' उम्र-ए-हयात का|
ख़ुद-ब-ख़ुद खुल जाएगा दरे कफस- ए-सय्याद,
दिल में जब जज़्बा-ए-परवाज़ होगा पैदा 'शकील'|
ज़िंदगी में गर रवानी है,
तो खुशक सेहरा में भी पानी है|
दुनिया को वजूद में लाना था,
आदम तो सिर्फ़ एक बहाना था|
अदम में थी मेरी रूह जसदे खाकी से पहले,
मुझे कौन जानता था मेरी ज़िंदगी से पहले|
मेरी ज़िंदगी में है वहम ऐ खुदा! तेरा,
जो मैं न होता 'शकील' तो तू क्या खुदा होता|
मैं गुनाहों, सबाब का वो मीज़ान हूँ 'शकील',
है खुदा पर भी यकीं और शैतान पर भी भरोसा मेरा|
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